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Tuesday, 29 January 2019

बीजेपी पर भारी पड़ेगा महागठबंधन: एसपी-बीएसपी-आरएलडी के पास 50 फीसदी से ज्यादा वोट

यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद बहुजन समाज पार्टी की कोशिश फिर से अपनी पुरानी ताकत को दोबारा हासिल करने की है. गठबंधन में बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने के बावजूद बीएसपी सुप्रीमो मायावती का कद बड़ा दिख रहा है. यहां तक कि लोकसभा चुनाव बाद पार्टी की संभावनाओं और खुद मायावती के प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी के भी कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे वक्त में बीजेपी से सीधी लड़ाई को लेकर क्या है बीएसपी की रणनीति और उसमें कांग्रेस की तरफ से मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के बाद क्या है बीएसपी का प्लान. इन सभी मुद्दों पर फ़र्स्टपोस्ट ने बीएसपी के प्रवक्ता सुधीन्द्र भदौरिया से बात कर बीएसपी की रणनीति के बारे में जानने की कोशिश की. सुधीन्द्र भदौरिया बीएसपी की तरफ से एकमात्र आधिकारिक प्रवक्ता हैं जो हर मंच पर पार्टी की बात रखते रहे हैं. पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश: सवाल- एसपी-बीएसपी गठबंधन में सीटों का ऐलान कब तक हो जाएगा? जवाब- हमलोग मीडिया में नहीं कहेंगे लेकिन, पार्टी अपना फैसला समय पर लेगी. ये रणनीतिक फैसले होते हैं, उसके हिसाब से किए जाते हैं. बहन मायावती जी इस पर फैसला लेंगी, वो उचित समय पर फैसला लेंगी. सवाल- गठबंधन में बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने के बावजूद मायावती सीनियर पार्टनर की भूमिका में दिख रही हैं, जबकि अखिलेश यादव एक जूनियर पार्टनर की भूमिका में नजर आ रहे हैं? क्या माना जाए कि मायावती प्रधानमंत्री पद की दावेदार के तौर पर उभरेंगी? जवाब- उस वक्त पोस्ट पोल क्या स्थिति बनती है, उस पर बहन मायावती विचार करेंगी. उस वक्त की परिस्थितियों के मुताबिक बीएसपी बहन मायावती जी के नेतृत्व में उचित फैसले लेगी. मायावती जी पार्टी और देश हित में जो भी फैसला होगा, वही करेंगी. सवाल- क्या इस तरह की कोई संभावना या सहमति है कि मायावती दिल्ली में प्रधानमंत्री पद संभालें या केंद्र की राजनीति संभांलें, जबकि अखिलेश यादव यूपी संभालें, यानी मुख्यमंत्री पद संभालें? जवाब- इस तरह की कोई बात नहीं है. ये फैसले मीडिया में नहीं होंगे. अभी तो 2019 है न? अभी हमें मोदी जी को हराना है, बीजेपी को रोकना है. उसमें हम क्या सोचेंगे कि 2022 फिर 2024 फिर 2029? अभी तो यह 2019 है. हम इसके लिए तैयार हो रहे हैं. बाकी जो भी समय आएगा तो बहन जी उस तरह से अपना फैसला करेंगी. सवाल- क्या आपलोगों का कांग्रेस के साथ कुछ सीटों पर टैक्टिकल एलायंस होगा? जवाब- अभी दो सीटें उनके लिए छोड़ी हैं अमेठी और रायबरेली. हम चाहते हैं कि वो दोनों मां और बेटे (सोनिया गांदी और राहुल गांधी) जीतें. अगर चुनाव में हम लोग लड़ेंगे तो उनको परेशानी होगी. इसलिए छोड़ दी है. टैक्टिकल या प्रैक्टिकल जो भी बात करना होगा, बहन जी से लोग बात करेंगे. बहन जी तय करेंगी. सवाल- राहुल गांधी का बयान आया था कि अगर एसपी और बीएसपी बात करते हैं तो फिर उनके साथ आने पर कोई ऐतराज नहीं है. आप इस बयान को कैसे देख रहे हैं, क्या कोई संभावना चुनाव से पहले बन सकती है ? जवाब- इस पर कुछ नहीं कहेंगे. जो भी बात होगी, बहन मायावती के माध्यम से होगी. उनके बयान का आशय हम कैसे समझाएं ? उन्हें कहने दें जो वो कह रहे हैं. वो तो उन्हीं से पूछा जाए कि वो क्या कहना चाहते हैं ? सवाल- आपको क्या लगता है कि राहुल गांधी अपने बयान से एसपी-बीएसपी के लिए दरवाजे खुले रखना चाहते हैं या फिर प्रियंका गांधी की एंट्री से उत्साहित राहुल गांधी अपने-आप को बड़ा भाई बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पहल एसपी-बीएसपी की तरफ से हो? जवाब- अब वो लोग जानें कि कौन क्या हैं ? भाई-बहन आजकल एक्टिव तो हो रहे हैं. हम उनके बारे में नहीं जानते हैं. हमलोग अपनी पार्टी को देखते हैं. हम बीएसपी के कार्यकर्ता हैं और विपक्ष में हैं. हमारी लड़ाई बीजेपी से है. सवाल- प्रियंका गांधी के कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने और उन्हें पूर्वी यूपी की कमान सौंपे जाने के बाद बीएसपी गठबंधन के लिए कितनी बडी चुनौती मानते हैं ? बीजेपी के नेता कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी की एंट्री से एसपी-बीएसपी का नुकसान होगा. जवाब- ये उनकी पार्टी का फैसला है, पार्टी को वे लोग कैसे चलाना चाहते हैं, हमलोग कैसे तय कर सकते हैं ? पार्टी कैसे चले उनकी पार्टी है, उनकी पार्टी के बारे में कैसे बता सकते हैं? उनकी पार्टी में कौन आ रहा है? नहीं आ रहा है? कैसे चल रही है ? वो जानें. जहां तक बीजेपी का सवाल है, वो हमारी चिंता न करें, अपनी चिंता करें. सवाल- बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर पाने का दावा कर रहे हैं. उनका दावा है कि बीजेपी फिर से पिछले लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराएगी. आप इस वोट शेयर के गणित को कैसे देखते हैं? जवाब- हमारा वोट तो पहले से ही 50 प्रतिशत है. 2017 के हिसाब से एसपी-बीएसपी और आरएलडी का वोट प्रतिशत 49 परसेंट है जबकि इनके(बीजेपी) 39 प्रतिशत हैं. हमें एक कदम चलना है और इनको 11 कदम चलना है. एक कदम वाला पहुंचेगा या फिर 11 कदम वाला पहुंचेगा? ये तो साफ दिख रहा है. कहीं कोई मुकाबला नहीं है. एसपी-बीएसपी और आरएलडी का समझौता हुआ है वो 50 फीसदी से ऊपर है. सबलोग अपना दिल थामकर बैठें. सवाल- लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि एसपी और बीएसपी का आपस में वोट ट्रांसफर कैसे होगा ? अक्सर देखा जाता है कि बीएसपी का वोट दूसरी पार्टियों को ट्रांसफर हो जाता है जबकि दूसरे दलों का वोट बीएसपी में ट्रांसफर नहीं हो पाता. जवाब- तो क्या ये बीजेपी में चला जाएगा ? ये सभी लोग (एसपी-बीएसपी-आरएलडी के लोग) एंटी बीजेपी हैं. बीजेपी से हमारा मुकाबला है. हमने बीजेपी को 1993 में भी हराया था. इस बार भी हम इनका मुकाबला करेंगे. हमारा वोटर बीजेपी को कभी वोट नहीं करता है, न ही समाजवादी पार्टी के लोग बीजेपी को पसंद करते हैं. और वो लोग किसान लोग हैं, मुस्लिम अल्पसंख्यक लोग हैं, हमारे भी दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक तबके के लोग चाहते हैं कि बीजेपी को हटाएं. उन्होंने वादाखिलाफी की है. हमारा, एसपी और आरएलडी का वोट एकजुट रहेगा, गन्ना किसानों के साथ बहुत अन्याय हुआ है, शोषण हुआ है, इसलिए सबलोग एकजुट हैं. सवाल- भारत रत्न का मुद्दा इस बार काफी गर्म है. आपकी पार्टी का भारत रत्न दिए जाने पर क्या प्रतिक्रिया है ? क्या इन चुनावों में यह मुद्दा होगा ? जवाब- बाबा साहब भीम राव अंबेडकर को भारत रत्न तब मिला जब बहन मायावती जी और मान्यवर कांशीराम ने दबाव बनाया था. उस वक्त प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रसाद सिंह थे. अभी काफी समय से हमलोग मांग कर रहे हैं कि मान्यवर कांशीराम को भारत रत्न की उपाधि दें. मान्यवर कांशीराम ने बहुत बड़ा काम किया. सामाजिक काम किया, राजसत्ता का हस्तांतरण करके पिछड़े, गरीब, दलित, शोषित लोगों को राजनीति में एक नई चेतना पैदा की और एक नई ताकत के लिए तैयार किया और उसमें काफी हद तक सफलता भी हासिल की थी. लेकिन, बीजेपी केवल चुनाव के नजरिए से काम करती है. पिछले चार-पांच वर्षों में जितने भी इस तरह के काम हुए हैं, केवल इनकी संकीर्ण राजनीतिक सोच है, बीजेपी के काम करने के तौर तरीकों में व्यापक समाज के दृष्टिकोण का अभाव है. इसीलिए इनके वक्त में मॉब लिंचिंग होती है. इनके समय में उना में दलितों पर नंगी पीठ कर कोड़े बरसाए जाते हैं, इनके समय में रोहित वेमुल्ला और नजीब जैसे केस आते हैं. इन लोगों के पास इस तरह की वो संप्रेषण शक्ति नहीं है, जो दलितों, पिछड़ों और मुस्लिम गरीबों के दर्द औऱ उनकी इच्छाओं को समझे.

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