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Wednesday 16 January 2019

लेखक होने और लिखने के शौक में वही अंतर है जो नेता होने और नेतागीरी करने में है

व्यवस्था यूं बदली कि आदरणीय और बुद्धिजीवी होना लेखक की आवश्यक योग्यता बन गई। शासन को ऐसे लेखक बड़े भाते थे जो पाठकों के अभाव को सत्ता के प्रभाव से भरते थे।

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