किसी ‘भगत’ और खूंखार अपराधियों का भला क्या मेल हो सकता है? भगत तो ‘भगत’ ही ठहरा और अपराधी, अपराधी ही रहेगा. देखने-सुनने में दोनो का दूर-दूर तक कोई जोड़ नहीं बनता. फिर भी भयभीत बदमाशों ने अदना से एक ‘भगत-जी’ से सीधे मोर्चा न लेकर, उन्हें दाएं-बाएं से घुमा-फिरा कर. साम-दाम-दंड-भेद से निपटवा देने की दिल दहला देने वाली जुगत खोज ली. ऐसी जुगत जिसने, एक बेगुनाह शिक्षक को मौत के घाट उतरवाकर बलि का बकरा बनवा डाला. अपराध की दुनिया से जुड़ी यह सच्ची कहानी है, अब से करीब चार दशक पहले की. चालीस साल पहले यानी 1976 के आसपास की. यह अलग बात है कि बेकसूर शिक्षक के कत्ल होने के बाद भी ‘भगत’ का तो बाल भी बांका नहीं हो सका. एक बेकसूर शिक्षक अकाल मौत मगर मारा गया. जबकि अपराधी जेल की सलाखों में कैद हो गए. आखिर क्या था पूरा माजरा? कौन थे भगत जी? क्यों बदमाशों ने भगत जी को निपटाने की उम्मीद में किसी बेकसूर शिक्षक को कर डाला कत्ल? जैसे जेहन में कौंध रहे तमाम सवालों के जवाब के लिए पढ़िए अपराध की दुनिया की हैरतंगेज यह ‘पड़ताल’ इस खास किश्त में. चालीस साल पहले 1976-77 का मुजफ्फरनगर उन दिनों नई मंडी थाने के इंचार्च थे यूपी पुलिस के दबंग दारोगा सुरेंद्र सिंह लौर उर्फ ‘भगत-जी’. सुरेंद्र लौर की दबंगई और ईमानदार छवि के चलते सूबे की जनता ने उन्हें ‘भगत-जी’ के उप-नाम से बुलाना-पुकारना शुरू कर दिया था. सूबे के पुलिस महानिदेशक से लेकर सिपाही-हवलदार तक सुरेंद्र लौर को भगत जी के ही नाम से जानने-पहचानने लगे थे. एक दिन सुबह-सुबह ही पास स्थित गांव के कुछ लोग थाना नई मंडी इंचार्ज यानी सुरेंद्र सिंह लौर के पास पहुंचे. पीड़ितों में से तीन युवकों का कहना था कि उनका शिक्षक भाई बीते कल में घर से स्कूल के लिए गया था. पूरा दिन गुजरने के बाद भी मगर वो स्कूल से वापिस नहीं लौटा है. सूचना मिलने पर थाना-इंचार्ज भगत जी ने परिजनों और गांव वालों से शिक्षक की संदिग्ध गुमशुदगी एक सादे कागज पर लिखवा कर अपने पास ही ले ली. साथ ही थाने में मौजूद स्टाफ और पीड़ित पक्ष के सदस्यों से कहा कि वे सब भी खोजने की कोशिश करें. बेकसूर मास्टर की मिली लाश घर-परिवार-ग्रामीण और थाना नई मंडी पुलिस मास्टर की तलाश में जुटी हुई थी. इसी बीत गायब शिक्षक के परिजनों को उसकी लाश लावारिस हालात में पड़ी मिल गई. बकौल उस हैरतंगेज ‘पड़ताल’ के ‘पड़ताली’ थाना नई मंडी के पूर्व प्रभारी और यूपी पुलिस के रिटायर्ड पुलिस उपाधीक्षक (डिप्टी एसपी) सुरेंद्र सिंह लौर (भगत जी), ‘परिवार वालों ने बताया कि लाश तो गांव के बाहर खेतों में पड़ी मिल गई है. घड़ी, साइकिल और बदन पर पहनी हुई कमीज (शर्ट) मगर गायब है. घड़ी और साइकिल कत्ल के बाद हत्यारे लूट ले गए होंगे. यह बात तो मेरी समझ में आई. साथ ही साइकिल और घड़ी लूटे जाने से इस बात को भी बल मिल रहा था कि कत्ल की वारदात को अंजाम लूट के इरादे से ही दिया गया है. बदन पर से शर्ट यानी कमीज क्यों गायब की गई? यह सवाल अनसुलझा और पूरी पड़ताल को उलझाने वाला था.’ ‘पड़ताल’ जिसने उलझा दिया ‘पड़ताली’ कत्ल और लूट का मामला दर्ज करके पड़ताल शुरु कर दी गई. शिक्षक की हत्या गला घोंटकर की गई थी. मौका-मुआयना करने पर पुलिस ने देखा कि लाश का पांव शिक्षक के ही पैजामे के नाड़े से बांधा हुआ था. ऐसा क्यों किया गया यह सवाल महत्वपूर्ण था. मौका-ए-वारदात का कोई चश्मदीद (आंखों देखा गवाह) नहीं था. परिवार वालों से पूछा गया कि उन्हें किसी पर कोई शक है? तो उन्होंने से शिक्षक या परिवार के किसी भी सदस्य की किसी से कोई दुश्मनी होने की बात भी इंकार कर दी. जो कि पुलिस के लिए सिरदर्दी वाला जवाब था. अगर किसी से दुश्मनी की आशंका जताई गई होती तो पड़ताल आसानी से आगे बढ़ सकती थी. अब चालीस साल बाद बताते हैं मामले के पड़ताली 77 वर्षीय सुरेंद्र सिंह लौर. ‘टुइंयां की बीवी बोली, मैं भी बिस्तर समेत चलूं! उस बे-वजह हुए कत्ल के ‘पड़ताली’ बकौल सुरेंद्र सिंह लौर, ‘कई दिन की माथा-पच्ची और दिन-रात की भागदौड़ के बाद पता चला कि वारदात के शिकार हुए मास्टर के गांव के बराबर में टुइंयां नाम का कुख्यात बदमाश रहता है. कई बार दबिश दी गईं. पुलिस को मगर टुइंयां बदमाश हाथ नहीं लगा. एक बार रात के वक्त मेरी टीम ने बदमाश टुइंयां के घर पर छापा मार दिया. किस्मत से टुइंयां हाथ लग गया. जब पुलिस टीम टुइंयां बदमाश को पूछताछ के लिए हिरासत में लेकर चलने लगी. आधी रात को घर पर पुलिस छापे से बौखलाई-खिसियाई हुई टुइंयां बदमाश की बीवी ने पुलिस पार्टी का रास्ता घेर लिया. वो पति टुइंयां को बेकसूर बता रही थी. जबकि शक के आधार पर शिक्षक की हत्या-लूट मामले में टुइंयां बदमाश से पूछताछ बहुत जरुरी थी. क्योंकि उन दिनों लूटपाट और कत्लेआम के लिए मेरे थाना-क्षेत्र (नई मंडी) में टुइंयां से ज्यादा खतरनाक कोई दूसरा बदमाश था ही नहीं. जब पुलिस टुइंयां को ले जाने पर अड़ गई, तो उसकी बीवी पुलिस से बोली कि तो फिर तसल्ली करो. मैं भी बिस्तर लेकर तुम्हारे (पुलिस पार्टी) साथ ही चलती हूं. वहीं थाने में रात गुजार लूंगी. जैसे-तैसे समझा-बुझाकर उसे शांत किया. तब टुइंयां बदमाश से पूछताछ संभव हो सकी.’ असली कातिल ने कई ‘बेकसूर’ पकड़वा डाले पुलिसिया नौकरी में मील का पत्थर साबित हुई उस बेहद पेचीदा मगर बाद में कामयाब रही ‘पड़ताल’ का किस्सा सुनाते हुए आगे बताते हैं वारदात के पड़ताली अफसर रहे सुरेंद्र सिंह लौर उर्फ भगत जी, ‘दो दिन तक बदमाश टुइंयां टस से मस नहीं हुआ. पूछताछ के सब हथकंडे पुलिस अपना चुकी थी. दो दिन बाद पता नहीं बदमाश टुइंयां के मन में क्या आया, उसने बेकसूर शिक्षक के कत्ल का जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के दौरान आरोपी टुइंयां ने अपने कई संदिग्ध और वारदात में शामिल साथियों के नाम भी पुलिस को गिनाए. उन सबको पकड़ कर थाने ले आया गया. उन सबसे पूछताछ की गई. मगर वे सब बेकसूर निकले. लिहाजा उन्हें थाने से ही पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया. अब सवाल यह पैदा हुआ कि जब टुइंयां ने मास्टर की हत्या का जुर्म कबूल ही लिया है तो फिर, उसने बाकी बेकसूरों को आखिर पुलिस के सामने क्यों बुलवाया? इसके पीछे वजह पता चली कि तफ्तीश के नाम पर टुइंयां सिर्फ पुलिस का वक्त जाया कराके उसे परेशान करना चाह रहा था. ताकि पुलिस थक-हार कर असल मुद्दे से भटक जाए.’ आखिर में काम पुलिस का ‘मुखबिर’ ही आया सुरेंद्र सिंह लौर बताते हैं, ‘जब मुझे लगा कि अब टुइंयां पुलिस को बरगला कर वक्त खराब करने पर उतारू है. लिहाजा मैंने अपना मुखबिर नेटवर्क इलाके में भेजा. एक मुखबिर की निशानदेही (गुप्त सूचना) पर थाना देवबंद स्थित घलौली गांव के कुख्यात बदमाश अख्तर को रात के वक्त पकड़वा लिया. अख्तर और टुइंयां का जब आमना-सामना करवाया गया तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गया. अख्तर से जब थाना नई मंडी में रात के 2-3 बजे पूछताछ चल रही थी, उसी वक्त उसके बदन में छिपी एक घड़ी अचानक जमीन पर गिर पड़ी. वो घड़ी उसी मास्टर की थी जो टुइंयां और उसके साथियों ने बेवजह ही मार डाला था. अख्तर ने ही पुलिस को बताया कि कत्ल किये गये शिक्षक की साइकिल रोहाना चीनी मिल के पास रखी है. अख्तर की निशानदेही पर पुलिस ने चीनी मिल से साइकिल बरामद कर ली. जबकि शर्ट एक धोबी के पास से बरामद हुई.’ ‘भगत-जी’ निपटाने को ‘मास्टर’ मार डाला ‘टुइंयां और अख्तर से सामूहिक पूछताछ हुई तो पता चला कि, उनके हाथों बेमौत मारे गये मास्टर का तो कोई दोष ही नहीं था. दरअसल नई मंडी थाने के इंचार्ज बनकर जैसे ही दबंग और अड़ियल भगत जी उर्फ सुरेंद्र सिंह लौर पहुंचे तो टुइंयां बदमाश खौफजदा हो उठा. टुइंयां ने पुलिस को बताया कि, वो भगत के रहते इलाके में सलामत नहीं रह सकता था. दारोगा भगत के डर के चलते कुछ दिन तक उसने बिना किसी वारदात को अंजाम दिये इलाके में शांति रखी. इससे लेकिन उसकी कमाई (लूटपाट) बंद हो गयी. उसके घर में खाने के लाले पड़ने लगे. टुइंयां जानता था कि जैसे ही वो इलाके में किसी वारदात को अंजाम देगा. नई मंडी थाने का नया-नया थाना-प्रभारी बनकर आया सुरेंद्र सिंह लौर उसे नहीं बख्शेगा. कुल जमा टुइंयां जैसा बदमाश और उसका गैंग भगतजी जैसे दबंग दारोगा से सीधे मुचैटा (मोर्चाबंदी) ले पाने में पूर्णत: बेबस था. ऐसे में टुइंयां बदमाश ने सोचा कि, भगत यानि दारोगा सुरेंद्र सिंह लौर के थाना इलाके में कत्ल-लूट की किसी सनसनीखेज वारदात को अंजाम दे डाला जाये. जिससे गुस्साये आला पुलिस अफसरान खुद ही भगत को नई मंडी थानाध्यक्ष पद से ट्रांसफर करके हटा देंगे. सो एक दिन मौका हाथ लगते ही टुइंयां ने साथी बदमाशों के साथ मिलकर बेकसूर शिक्षक की हत्या कर दी. बदमाश जब शिक्षक की लाश ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, उसी वक्त उस रास्ते पर कोई गाड़ी पहुंच गई. टुइंयां और उसके साथी बदमाश समझे कि शायद दारोगा भगत की जीप मौके पर पहुंच गयी है. लिहाजा बदमाश मास्टर की लाश जहां की तहां छोड़ कर भाग गये.’ आज 40 साल पुरानी उस पेचीदा पड़ताल की कामयाबी का जिक्र करते हुए हंस पड़ते हैं सुरेंद्र सिंह लौर. बकौल रिटार्यड पुलिस उपाधीक्षक लौर, ‘उस मामले में टुइंयां और उसके साथी बदमाशों को 20-20 साल की उम्रकैद हत्या के मामले में हुई थी. जबकि अदालत ने सभी आरोपियों को 7-7 साल की बमशक्कत कैद लूट के आरोप में मुकर्रर की थी.’ (लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं. )
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Saturday 23 February 2019
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माया मिली न राम: ‘भगत-जी’ को थाने से हटवाने की जिद में बदमाशों ने बेगुनाह का कत्ल कर डाला
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