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Friday 22 February 2019

कन्हैया कुमार बेगूसराय संसदीय सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार बन पाएंगे?

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने आधिकारिक तौर पर बिहार की बेगूसराय संसदीय सीट से कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. पार्टी की जिला इकाई ने कन्हैया कुमार के नाम पर मुहर लगा दी है. पिछले लगभग एक साल से कन्हैया कुमार को बेगूसराय संसदीय सीट से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा जोरों से चल रही थी, लेकिन बिहार में महागठबंधन में शामिल सबसे अहम दल आरजेडी की तरफ से खुलकर आश्वासन नहीं दिया जा रहा था. ऐसे में सवाल उठता है कि कन्हैया कुमार वाकई में बेगूसराय लोकसभा सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे? या फिर सिर्फ सीपीआई के? या फिर सीपीआई और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार होंगे? कांग्रेस की राज्य इकाई के एक सीनियर नेता फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘पिछले कई दिनों से कांग्रेस पार्टी के कई सीनियर्स नेताओं का तेजस्वी यादव से बात हो रही है. बेगूसराय से कन्हैया कुमार को महागठबंधन का उम्मीदवार बनाने के लिए आरजेडी पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बनाया जा रहा है, बल्कि इस फैसले के बाद बिहार के दूसरे लोकसभा सीटों पर आरजेडी को ही बड़ा फायदा होगा. अगड़ी जातियों के युवा और बेरोजगार वोटर्स इस फैसले पर आरजेडी उम्मीदवार को वोट करेंगे. महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर कन्हैया कुमार पूरे बिहार ही नहीं पूरे देश में स्टार प्रचारक के तौर पर भी असरदार साबित हो सकते हैं. साथ ही कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार के बहाने मोदी विरोधी युवाओं को एकजुट कर सकेंगी.’ दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीपीआई की जिला इकाई का कन्हैया कुमार के नाम पर मुहर लगाना भी एक तरह की रणनीति ही है. हालांकि, आरजेडी के एक नेता नाम नहीं बताने के शर्त पर फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल जाने से पहले तक कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे थे. खुद कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नेताओं ने लालू प्रसाद यादव से इस बारे में संपर्क किया था और लालू प्रसाद यादव जी की तरफ से भी उस वक्त कन्हैया कुमार को लेकर एक तरह से सहमति बन गई थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों में काफी बदलाव हुए हैं.' वो कहते हैं , 'मोदी सरकार का अगड़ी जातियों को भी 10 प्रतिशत का आरक्षण देने के फैसले के बाद राज्य की जातीय समीकरण के हिसाब से कन्हैया कुमार का समर्थन करना अब ठीक बात नहीं है. पार्टी नेतृत्व आरजेडी के पुराने नेता और लंबे समय से बेगूसराय से विधान पार्षद रहे तनवीर हसन पर ही दांव लगाने का मन बना चुकी है. 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद दिवंगत सांसद भोला सिंह मामूली अंतर से ही आरजेडी के तनवीर हसन से जीते थे.’ जानकारों का मानना है कि पिछले एक साल से आरजेडी और खुद तेजस्वी यादव भी कन्हैया कुमार के बेगूसराय से उम्मीदवारी की बात को लेकर गोल-मटोल जवाब दे रहे हैं. कहीं न कहीं आरजेडी के इन नए सिपहसलारों को लगता है कि कन्हैया कुमार का राष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ने से तेजस्वी यादव का राजनीतिक कद कम हो जाएगा. कन्हैया कुमार अगड़ी जाति से होने के बावजूद पिछड़ी जातियों में भी लोकप्रिय है. मुस्लिमों में भी से एक बड़ा तबका कन्हैया कुमार के विचारों से प्रभावित है. ऐसे में आगे चल कर कन्हैया कुमार तेजस्वी यादव के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं. दरअसल आरजेडी नेता तर्क दे रहे हैं कि क्योंकि दिल्ली पुलिस ने तीन साल पुराने जेएनयू मामले में कन्हैया कुमार समेत अन्य लोगों पर चार्जशीट दायर की है. ऐसे में बिहार में एक-एक सीट पर महागठबंधन काफी सोच-विचार कर फैसला करेगा. बता दें कि सीपीआई ने बीते 17 जनवरी को साफ कर दिया था कि इस मुद्दे को लेकर आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से बात चल रही है. पार्टी के सदस्य जल्द ही रांची रिम्स में लालू यादव से इस मसले पर मुलाकात करने भी जाएंगे, लेकिन पिछले एक महीने के बाद भी जब कोई बात नहीं बनी तो आखिरकार सीपीआई ने एक बड़ा दांव खेल कर महागठबंधन की एकता को टटोलना चाहा है.

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