पंचों के दर पर रामलला: राम को नजरिए नहीं जज्बातों के चश्मे से देखें हुजूर! - Breaking News

by Professional Guide

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Wednesday 13 March 2019

पंचों के दर पर रामलला: राम को नजरिए नहीं जज्बातों के चश्मे से देखें हुजूर!

आखिरकार राम जन्‍मभूमि मामले को अब मध्‍यस्‍थता से सुलझाने के लिए 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिण भारत के तीन प्रोफेशनल लोगों का नाम तय किया है. इनमें जानें-माने आर्ट ऑफ लिविंग के संस्‍थापक श्री श्री रविशंकर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मोहम्‍मद इब्राहिम कुलीफुल्‍लाह और वरिष्‍ठ वकील श्रीराम पंचू के नाम शामिल हैं. जस्टिस कुलीफुल्लाह को छोड़कर दोनों सदस्यों को विवादित मामले में हाथ आजमाने का बड़ा अनुभव है. प्रयास को कामयाबी से कतई नहीं जोड़ा जा सकता है. पिछले प्रयागराज में संतों और विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर यही निर्णय आया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक इंतजार करना चाहिए. अब सुप्रीम अदालत कह रही है कि उन्हें पंचों के फैसले का इंतजार है. वर्षों बाद आज अदालत ने जिस भावना को आधार बनाते हुए आपसी सहमति से राय बनाने पर जोर दिया है ,यही बात तो संघ प्रमुख मोहन भागवत भी कह रहे थे. उन्होंने विवाद के समाधान का फार्मूला भी दिया था. बातचीत से हल नहीं? दिल्ली में भविष्य का भारत के आयोजन में मैंने यही सवाल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी से पूछा था 'राम' इस देश की परंपरा हैं, संस्कृति हैं, आस्था हैं, सबसे बड़े इमाम हैं फिर राम मंदिर मुद्दा आपसी बातचीत से हल क्यों नहीं हो सकता? क्या इसके लिए अदालत के फैसले या सरकार का अध्यादेश ही विकल्प है?' उनका जवाब था: 'राम करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े हैं, करोड़ों लोगों के आदर्श हैं और इससे अलग वे कई लोगों के लिए इमामे-हिंद भी हैं, इसमें राजनीति का प्रश्न अबतक होना ही नहीं चाहिए था. भारत में हजारों मंदिर तोड़े गए आज सवाल उन मंदिरों का नहीं रह गया है. राम और अयोध्या, राम जन्मभूमि की प्रमाणिकता वैज्ञानिक है, आस्था है, संस्कृति है इसलिए राम मंदिर का निर्माण हो और जल्द से जल्द हो. संवाद की भूमिका श्रेष्ठ हो सकती है '. .. लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ी. बाधा कौन डाल रहा है? 2010 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 2.5 एकड़ विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटकर मुस्लिम पक्ष के हिस्से में लगभग 50 गज जमीन का वैधानिक हक दिया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने उसी फैसले को जमीन पर उतारने को लेकर तीन विद्वान लोगों की समिति बनाई है. समिति के सामने आज यह यक्ष प्रश्न है कि बाधा कौन डाल रहे हैं? यह बात दुनिया जानती है कि भारत की हजारों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक तथ्य अयोध्या और राम से ही संपूर्ण है. सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर क्यों भारत की सबसे पुरानी विरासत और उसकी पहचान वाली अयोध्या अपने एक छोटे से जमीन के विवाद का हल आपसी सहमति से नहीं ढूंढ सकता? इसी सवाल का जवाब ढूंढने सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्तता के लिए अयोध्या (फैज़ाबाद) को ही चुना है. दिक्कत यह है कि इस पंचैती में स्थानीय लोग नहीं हैं और मीडिया की टिप्पणी अस्वीकार्य है. लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्थानीय लोगों ने स्वागत किया है. जिनका सरोकार मसले का निदान और भव्य मंदिर के निर्माण से है. नजरिए का सवाल अब यह सवाल नहीं है कि पिछले 9 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मामले में यह क्यों तय नहीं कर पाई है कि टाइटल शूट विवाद कौन सी बेंच सुने. आखिरकार कोर्ट में यह कश्मकश क्यों बनी कि भावना से जुड़ा यह मामला हर पक्ष को संतुष्ट नहीं कर पाएगा? फिर इलाहबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इतने वर्षों तक क्यों रोका गया? क्यों हिंदू ट्रस्ट और मंदिरों के 67 एकड़ जमीन पर निर्माण कार्य को रोका गया? उनकी जमीन को इतने वर्षों तक सरकारी कब्जे में रखने का क्या औचित्य था? सवाल यह भी है कि इन वर्षों में समाधान के गंभीर प्रयास भी हुए हैं. जो दोनों पक्षों की ओर से भी हुई है और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी की है. फिर अबतक उन्हें सबजुडिस मामला होने के कारण क्यों रोका गया? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब आज भी संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान में ढूंढा जा सकता है. जो शायद व्यावहारिक भी है और दोनों पक्षों को कुछ त्याग के लिए भी प्रेरित करता है. सिर्फ नजरिया बदलना पड़ेगा और सियासत छोड़नी पड़ेगी. प्रयागराज के दिव्य और भव्य कुंभ में इस बार 24 करोड़ से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई है. आस्था की डुबकी लगाने वालों में माननीय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी हैं. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक संतों ,वैरागियों और समाज के इस अद्भुत संगम को करीब से देखने की ललक रोक नहीं पाए. जाहिर है 24 करोड़ लोगों ने प्रयागराज कुंभ को अपने अपने नजरिए देखा है . प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिर जाने के बजाय स्वच्छता कर्मचारियों के पांव धोकर प्रयागराज कुंभ को अपने दृष्टिकोण से देखा, जो शुद्ध मानवतावादी और हर व्यक्ति में राम को ढूंढने की प्रेरणा दे सकती है. 24 करोड़ लोगों का अलग-अलग नजरिया ही तो कुंभ का आदर्श है. लेकिन भावना सिर्फ भारत के विराट स्वरूप का दर्शन थी. यही तो सनातन है. राम के प्रति भावना और नजरिए का यही सवाल आज सबके सामने है जो आज हिंदू, मुस्लिम, अदालत, मध्यस्थकार सबसे पूछ रहा है. अब बस करो राम लला को अब मत भटकाओ..... (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रसार भारती के साथ कंस्लटेंट के तौर पर जुड़े हैं.)

from Latest News देश Firstpost Hindi https://ift.tt/2tWW9cv

No comments:

Post a Comment

ऑनलाइन SBI देता है कई सुविधाएं, घर बैठे चुटकी में हो जाएंगे आपके ये काम

SBI Online: भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) अपने ऑनलाइन बैंकिंग पोर्टल पर नेटबैंकिंग की अलावा कई अन्य सुविधाएं देता है. इनका लाभ उठा...

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here