नई दिल्ली एड्स या फिर यूं कहें कि एचआईवी को लेकर सरकार ने 2030 तक जो लक्ष्य रखा है, उसे हासिल करना जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। दिल्ली स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के मुताबिक, सरकार की तरफ से आने वाले 10 साल यानी 2030 तक देशभर में एचआईवी के नए केस 10,200 और राजधानी दिल्ली में इनकी संख्या हर साल 173 तक सीमित करने का लक्ष्य तय किया गया है। वह भी तब, जब देश और दिल्ली की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या इन 10 साल में सरकार इसे पूरा कर पाएगी? एक दिसंबर यानी वर्ल्ड एड्स डे के मौके पर सिमरनजीत सिंह ने जानी देश और दिल्ली की स्थिति: हर साल देश और दिल्ली में इतने नए केस दिल्ली स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में सालाना 87,500 एचआईवी के नए केस सामने आते हैं। वहीं एचआईवी के चलते एक साल में करीब 69,000 लोग को अपनी जान गंवा देते हैं। वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल 6500 से 7 हजार के बीच नए केस आते हैं। इनमें से दिल्ली के रहने वाले औसतन 3 हजार मरीज होते हैं। बाकी वे लोग हैं, जो दिल्ली से बाहर के हैं। दिल्लीवालों के जो हर साल औसतन 3 हजार केस पाए जाते हैं, उनमें से 500 लोगों की मौत हो जाती है। एचआईवी के मरीज ज्यादातर 15 से 49 साल की उम्र के बीच होते हैं। इस साल मार्च तक दिल्ली के कुल 32,130 एचआईवी के मरीजों को ऐंटी रेट्रोवायरल थैरेपी (एआरटी) पर रखा गया था। वहीं जून में इनकी संख्या बढ़कर 33,151 तक पहुंच गई। आधे मरीज दिल्ली से बाहर के सोसायटी के मुताबिक, दिल्ली में हर साल एचआईवी के 6500 से 7000 के बीच नए केस सामने आते हैं, लेकिन इनमें से केवल 3 हजार के आसपास मरीज दिल्ली के होते हैं, बाकी दिल्ली से बाहर के हैं। हर साल यह ग्राफ इतना ही रहता है। वे लोग जो दिल्ली में काम करने, पढ़ने आदि आते हैं, वह अनप्रटेक्टिड सेक्स और इंजेक्टेबेल नशे के चलते इसका शिकार हो जाते हैं। नॉर्थ वेस्ट डिस्ट्रिक्ट की गर्भवती सबसे ज्यादा संक्रमित एड्स कंट्रोल सोसायटी के 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के नॉर्थ वेस्ट डिस्ट्रिक्ट की गर्भवती महिलाओं में सबसे ज्यादा एचआईवी के केस पाए गए हैं। पूरी दिल्ली के कुल 18.6 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के केस इसी डिस्ट्रिक्ट में पाए गए हैं। दूसरे नंबर पर नई दिल्ली डिस्ट्रिक्ट है, जहां 17.6 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एचआईवी पॉजिटिव मिला है। 90-90-90 टारगेट्स यूएनएड्स ने एचआईवी को कंट्रोल करने के लिए यह टारगेट्स तय किया है -एचआईवी ग्रस्त 90 प्रतिशत केसेज को डायग्नोस करना -जिन 90% लोगों में एचआईवी मिला, उन्हें ट्रीटमेंट उपलब्ध करवाना -जिन 90% को मेडिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध कराया, उनमें से 90% पर 2020 तक कंट्रोल पा लिया जाए डॉक्टर्स कहते हैं डॉक्टर्स कहते हैं कि कुछ साल पहले तक एचआईवी खतरनाक बीमारी माना जाता थ, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बीते कुछ साल में कई तरह की नई दवाएं और तरीके आए हैं, जिनसे अब मौत की बात बेहद पुरानी हो गई है। अस्पतालों में आज इसका पूरा इलाज मौजूद है। व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी जीता है। वहीं पिछले कुछ साल के आंकड़े देखें तो एचआईवी/एड्स के मरीजों में भी कमी आई है। ये हैं एचआईवी ट्रांसमिशन के कारण -ब्लड और ब्लड से संबंधित प्रोडक्ट्स से एचआईवी होने का खतरा 1% तक रहता है। -1.7 प्रतिशत तक संक्रमित सिरिंज से एचआईवी होने का खतरा रहता है। -1.5 प्रतिशत खतरा होमोसैक्शुअल से रहता है। -2.7 प्रतिशत केस में कारणों का पता नहीं चल पाता। -पेरंट्स से बच्चे में एचआईवी ट्रांसमिशन का खतरा 5 प्रतिशत तक रहता है। -सबसे ज्यादा यानी 8.2 प्रतिशत खतरा हैट्रोसैक्शुअल रिलेशन से होता है।
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