2019 के लोकसभा चुनावों में एक तरफ बीजेपी की साख दाव पर लगी है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी सत्ता में वापसी करने के लिए पूरा जोर लगा रही है. एक तरफ नरेंद्र मोदी की सरकार ने आर्थिक तौर पर पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण बिल पास करके उन्हें लुभाने का प्रयास किया है. वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐलान किया कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो वह गरीबों के लिए यूनिवर्सल बेसिक पे (UBI) लागू करेगी. यानी गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले हर शख्स को एक तय रकम मिलेगी. दिलचस्प ये है कि राहुल गांधी से पहले नरेंद्र मोदी सरकार भी UBI के पक्ष में थी. 2017 की शुरुआत में ऐसी कई खबरें आई थीं कि पीएम नरेंद्र मोदी UBI को लागू कर सकते हैं. हालांकि दो साल बाद भी मोदी सरकार ने इस तरह का कोई ऐलान नहीं किया है. बजट में सिर्फ 3 दिनों का वक्त बचा है. उसके बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अंदाजा यह लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी के इस ऐलान की काट बीजेपी पेश कर सकती है. अगर बीजेपी ने राहुल गांधी को टक्कर देने के लिए इससे बड़ी वित्तीय योजना का ऐलान किया तो उसका भार देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. फिस्कल ईयर 2018-19 में टोटल सरकारी कर्ज 89 लाख करोड़ है. इस तरीके के किसी भी फैसले से अगले फाइनेंशियल ईयर में सरकारी कर्ज 12 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगा. क्या है UBI? यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत हर महीने एक तय रकम मिलती है. इसमें किसी तरह की कोई शर्त नहीं होती और ना ही किसी तरह के टेस्ट या काम करने की जरूरत होती है. दूसरे शब्दों में कहें तो देश के हर नागरिक को एक तय समय पर तय रकम मिलेगी. इसमें उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति का कोई असर नहीं होगा. पहली बार 2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे में इसका जिक्र हुआ था. अगर हम वर्ल्ड बैंक की नई सीमा के हिसाब से देखें तो हर शख्स को हर दिन 1.90 डॉलर (लगभग 135 रुपए) मिलने चाहिए. इस हिसाब से देखें तो 130 करोड़ की आबादी के लिए कुल 17,300 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. हालांकि राहुल गांधी ने सिर्फ गरीबों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम देने का ऐलान किया है. मान लेते हैं कि 20 फीसदी व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे हैं. ऐसे में 1.90 डॉलर के हिसाब से टोटल खर्च 12.6 लाख करोड़ रुपए होगा. यह हमारे टोटल आम बजट का आधा है. लिहाजा यह तो किसी सूरत में मुमकिन नहीं लगता. भारत में क्या हो सकती है लिमिट? अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बेसिक इनकम गरीबी रेखा से ऊपर तय होना चाहिए. रंगराजन कमिटी सहित कई कमिटी ने 32 रुपए से लेकर 47 रुपए के बीच बेसिक इनकम तय करने की सिफारिश की है. अगर 32 रुपए का लेवल देखें तो एक साल में एक शख्स को हर महीने 960 रुपए और साल में 11,520 रुपए मिलेंगे. लेकिन इस फंड का इंतजाम करना सरकार के लिए काफी मुश्किल होगा. विदेश में क्या होता है? 1 जनवरी 2017 को फिनलैंड ने बेसिक इनकम पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था. वहां की सरकार ने 2000 बेरोजगार युवकों को दो साल तक हर महीने 560 पौंड (52,363 रुपए) देने का ऐलान किया था. पश्चिमी देशों में लोगों के बीच बढ़ती आर्थिक असमानता बढ़ने की वजह से बेसिक इनकम पर फोकस बढ़ा है. भारत के पास इतना सरप्लश कैश नहीं है कि वह इस तरीके के फैसले ले. ऐसे में अगर राहुल गांधी ने यह सपना दिखाया है तो मुमकिन है कि उनकी सरकार बन भी गई तो यह सपना पूरा करना मुश्किल होगा.
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Tuesday, 29 January 2019
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Universal Basic Pay: राहुल गांधी ने ऐलान तो कर दिया, लेकिन यह जुमला ना बन जाए
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