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Friday 22 February 2019

सियासी दांव-पेंच में BJP शिवसेना में बनी बात, 5 साल जिसे आंख दिखाई अब उसे ही लगाया गले

सोमवार 18 जनवरी की शाम बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जब मुंबई में मातोश्री पहुंचे, तो इसका संकेत साफ था कि बीजेपी और शिवसेना में बात बन गई है. बीजेपी अध्यक्ष का उद्धव ठाकरे के घर जाकर मुलाकात करना इस बात का एहसास कराने के लिए था कि बीजेपी की 30 साल से पुरानी सहयोगी शिवसेना को पूरा सम्मान दिया जा रहा है. मातोश्री से बाहर निकलने के बाद मुंबई में ही एक होटल में उद्धव ठाकरे और अमित शाह समेत दोनों दलों के बड़े नेताओं की मौजूदगी में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में इस बात का ऐलान कर दिया गया कि बीजेपी और शिवसेना दोनों साथ-साथ चुनाव लड़ेंगे. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गठबंधन की घोषणा करते हुए साफ कर दिया कि लोकसभा चुनाव 2019 में राज्य की 48 सीटों में से 25 पर बीजेपी और 23 पर शिवसेना चुनाव लड़ेगी. जबकि विधानसभा चुनाव में राज्य की 288 सीटों में दूसरे छोटी सहयोगियों को कुछ सीटें देने के बाद बची हुई सीटों पर बीजेपी-शिवसेना बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लडेंगे. दोनों दलों के बीच गठबंधन से उत्साहित बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया कि राज्य की कुल 48 सीटों में से कम से कम 45 सीटों पर बीजेपी-शिवसेना की जीत होगी. गौरतलब है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना कई मौकों और मुद्दों पर उसकी खुलकर आलोचना करती रही है. चाहे राम मंदिर का मुद्दा हो या फिर महाराष्ट्र में किसानों का मुद्दा, बार-बार बीजेपी की सहयोगी शिवसेना की तरफ से सरकार पर हमला होता रहा है. यह अलग बात है कि केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर शिवसेना बीजेपी के साथ सरकार में शामिल रही है, फिर भी कई मुद्दों पर उसकी तरफ से दोनों जगहों पर सरकार की आलोचना होती रही है. यह भी पढ़ें: शिवसेना-BJP का हुआ गठबंधन, लोकसभा में 23 सीटों पर शिवसेना तो 25 सीटों पर लड़ेगी BJP: फडणवीस इन पांच साल में शिवसेना की तरफ से आए कड़वे बयानों का एहसास मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को था. लिहाजा, उनकी तरफ से सफाई देने की कोशिश भी की गई. फडणवीस ने उद्धव ठाकरे की तरफ से राम मंदिर मुद्दे पर की गई कोशिश का समर्थन किया. उन्होंने साफ कर दिया कि बीजेपी भी चाहती है कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बने और दोनों ही पार्टी इसके लिए कोशिश करेंगे. किसानों का मुद्दा इसके अलावा किसानों के मुद्दे पर शिवसेना अपनी ही सरकार पर हमलावर रही है. मुख्यमंत्री फडनवीस की तरफ से इस मुद्दे पर भी सफाई दी गई और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की बातों को तरजीह देने की बात कही गई. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में 50 लाख किसानों की कर्जमाफी हुई है. लेकिन, शिवसेना प्रमुख चाहते हैं कि जो छूट गए हैं उन्हें भी इसका लाभ दिया जाए. इसके अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को ठीक से लागू करने के लिए उद्धव ठाकरे चाहते थे कि हर जिले में कुछ इस तरह की व्यवस्था हो, जिससे सभी किसानों तक इसका लाभ मिल सके. उनकी मांग यह भी रही है कि 500 स्क्वायर फीट से कम के रिहायशी इलाके में रहने वाले मध्य वर्ग के लोगों को टैक्स में भी रियायत मिले. मुख्यमंत्री फडनवीस ने उद्धव ठाकरे के सामने साफ कर दिया कि राज्य सरकार इन सभी मांगों को मानेगी और इस पर आगे बढ़ेगी. उन्होंने उद्धव ठाकरे की तरफ से बीच-बीच में उठाई जा रही इन सभी मांगों को मार्गदर्शन के तौर पर दिखाने की कोशिश की. बौखलाहट बढ़ी! लेकिन, हकीकत सबको पता है यह मार्गदर्शन किसी सुझाव के तौर पर नहीं बल्कि तनातनी के तौर पर सामने आता रहा है. तब लगता है कि बीजेपी और शिवसेना साथ-साथ सरकार में नहीं बल्कि एक-दूसरे के विरोधी हैं. यहां तक कि पिछले साल पालघर के लोकसभा उपचुनाव में दोनों दल एक-दूसरे के सामने थे, जिसमें मिली हार ने शिवसेना के भीतर बेचैनी और बौखलाहट को और बढ़ा दिया था. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी पता है कि जब जनता के दरबार में जाना होगा तो चार सालों तक शिवसेना की तरफ से सरकार की हो रही आलोचना का भी जवाब देना होगा. लिहाजा, इस आलोचना को मार्गदर्शन का नाम देकर दोनों पार्टियों के बीच खाई पाटने का संकेत दे रहे हैं. जब बारी उद्धव ठाकरे की आई तो उन्होंने भी इस मुद्दे पर अपनी तरफ से एकता दिखाने की कोशिश की. उन्होंने कहा, 'पिछले 30 सालों से शिवसेना और बीजेपी को देख रहे हैं. 25 साल तक हम एकजुट रहे और 5 साल तक भ्रम की स्थिति बनी रही. लेकिन जैसा सीएम ने कहा, मैंने अभी भी समय-समय पर सरकार को मार्गदर्शन प्रदान किया है.' पांच साल से सही मायने में भ्रम की ही स्थिति बनी रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उभार के बाद विधानसभा चुनाव के वक्त दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे. लेकिन, चुनाव बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने के आंकड़े से पीछे रह गई थी. तब शिवसेना ने समर्थन भी दिया था और सरकार में शामिल भी हुई थी. बावजूद इसके बीजेपी से कम महत्व मिलने के चलते कभी बीजेपी की बड़ी पार्टनर रह चुकी शिवसेना इस बात को पचा नहीं पा रही थी. शिवसेना का यही भड़ास रह-रह कर सामने आता रहा. नाराज शिवसेना ने लोकसभा चुनाव 2019 अकेले लड़ने का फैसला भी कर लिया था. लेकिन, दोनों ही दलों की मजबूरी ने आखिरकार एक बार फिर उन्हें एक साथ ला खड़ा किया. मुख्यमंत्री फडणवीस की बातों से इस बात की झलक भी मिल रही थी, जब उन्होंने कहा कि शिवसेना और बीजेपी दोनों ही हिंदुत्व और राष्ट्रीय विचार वाली पार्टियां हैं. यह सच्चाई भी है. दोनों ही दलों में विचारधारा के स्तर पर काफी हद तक समानता है. शिवसेना बीजेपी से अलग तो हो सकती है, लेकिन कांग्रेस का हाथ पकड़ना उसके लिए काफी मुश्किल हो सकता है. शिवसेना की तरफ से कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ भी की गई. लेकिन, आखिर में उसे समझ में आ गया कि अपनी भलाई किसमें है.

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