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Tuesday 12 February 2019

अब तक सैंकड़ों की जान ले चुका है गुर्जर आंदोलन...ये कैसी हक की लड़ाई है?

2007 वो साल माना जाता है जब राजस्थान में गुर्जर आंदोलन अपने उग्र रूप में शुरू हुआ था. आंदोलन की शुरुआत के साथ गुर्जरों ने जयपुर-दिल्ली, जयपुर-आगरा, मुंबई-दिल्ली ट्रासपोर्ट रूट को अपना निशाना बनाया था. ये काम इसलिए किया गया था कि अगर इन तीन बड़े आवागमन-मार्गों को निशाना बनाया जाएगा तो सरकारें जल्दी चेत जाएंगी. जब गुर्जरों को हटाए जाने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि हमारे लोगों पर गोलियां क्यों चलाई गईं. उनका कहना था कि राजस्थान के पटोली गांव में गुर्जर प्रदर्शनकारियों पर पुलिसवालों ने गोलियां चलाईं जिससे उनकी मौत हो गई. प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन मख्यमंत्री और देश के गृहमंत्री पर आरोप लगाए थे. उनका कहना था कि हम अपने हक की मांग कर रहे थे और पुलिस की तरफ से हमें जो प्रतिक्रिया मिली है, उसके बाद हम रुकने वाले नहीं हैं. इस गुर्जर आंदोलन में हिंसा की उग्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे रोकने के लिए सिर्फ राज्य पुलिस नहीं नहीं अर्द्धसैनिकों बलों को भी बड़ी संख्या में लगाना पड़ा था. जहां-तहां निजी और सरकारी संपत्ति को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाया गया. अंतत: मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को प्रदर्शनकारियों के सामने झुकना पड़ा और स्पेशल कैटगरी बनाकर गुर्जर समुदाय को पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया. हालांकि सरकार ने इस आंदोलन को रोकने के लिए दूसरे रास्ते भी अख्तियार किए थे. सरकार ने कहा था कि जो गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र हैं उनमें विकास कार्यों के विशेष पैकेज दिए जाएंगे. लेकिन तब राज्य के गुर्जर नेता किरोड़ी लाल बैंसला ने सरकार को जवाब दिया आंदोलन कुछ पैसों से खरीद नहीं जा सकता है. वसुंधरा राजे सरकार ने भले ही गुर्जरों के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर दी थी लेकिन उन्होंने बेहद तीखे शब्दों का इस्तेमाल भी किया था- ये बहुत आश्चर्यजनक है कि डकैता और गुंडा तत्व किरोड़ी लाल बैंसला के आंदोलन का हिस्सा बन गए हैं और हाथों में हथियार लिए ये कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं...ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ऐसा माना जाता है कि इस आंदोलन के दौरान 73 लोगों के लोगों की मौत हुई थी. लेकिन इस आंदोलन को नजदीक से देखने वालों का ये भी कहना है कि ये संख्या बेहद कम करके बताई जाती है, वास्तविक आंकड़े कहीं ज्यादा हैं. इसके बाद साल 2011 में गुर्जर आंदोलन की आग भड़की. अब वर्तमान समय में भी गुर्जर आंदोलन जारी है. गुर्जर समुदाय सड़कों पर है और राष्ट्रीय मीडिया का पूरा ध्यान इस समय इस आंदोलन पर टिका हुआ है. क्या है मांग... [caption id="attachment_125218" align="alignnone" width="1002"] 2008 में भड़के आंदोलन की तस्वीर ( रॉयटर्स इमेज )[/caption] गुर्जर समुदाय किसानों और व्यापार में मुख्य रूप से जुड़ा हुआ है. हालांकि इस समुदाय की तरफ से यह मांग की जा रही है कि इसे एससी/एसटी दर्जे में शामिल किया जाए लेकिन सामान्य तौर इस समुदाय बहुत पिछड़ा नहीं माना जाता है. आदोलनकारियों की मांग है कि उन्हें भी एसटी स्टेटस दिया जाए जिससे सरकारी नौकरी में उनकी भागीदारी बढ़ सके. एसटी स्टेटस की इस जबरदस्त मांग के पीछे एक स्थानीय भौगोलिक कारण भी विशेष रूप से काम करता है और वो मीणा समुदाय से प्रतिद्वंद्विता. राजस्थान में मीणा समुदाय एक मजबूत एसटी जातीय वर्ग है जिससे गुर्जर समुदाय की प्रतिद्वंद्विता मानी जाती है. साल 2007 में भी जब गुर्जर समुदाय की तरफ से मांग की गई थी कि उन्हें एसटी समुदाय में शामिल किया जाए तो मीणा समुदाय की तरफ इसका विरोध किया गया था.

from Latest News देश Firstpost Hindi http://bit.ly/2SCCBbm

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