लखनऊ कैंसर का पता लगाने के लिए अब तक सीटी स्कैन, पेट सीटी और बायॉप्सी जैसी जांचें होती थी। हालांकि अब महज से कैंसर का पता चल सकेगा। के पल्मोनरी ऐंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग ने फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 60 लोगों पर शोध के बाद यह दावा किया है। 2017 से 2019 तक किए गए शोध के अनुसार दो माइक्रो आरएनए चिह्नित किए गए हैं, जिनसे कैंसर का पता चलता है। 4 फरवरी को है, इससे एक दिन पहले सोमवार को केजीएमयू के पल्मोनरी ऐंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में कैंसर को लेकर प्रेसवार्ता हुई। इसमें डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि आरएनए में मौजूद माइक्रो आरएनए के कण टूटकर खून में मिलते रहते हैं। जब कहीं पर कैंसर बनता है तो माइक्रो आरएनए भी खून में मिलते रहते हैं। छह नए माइक्रो आरएनए पर शोध किया गया। इनमें दो ऐसे पाए गए जिनके ब्लड में होने से कैंसर की पुष्टि होती है। डॉ. वेद के अनुसार इन छह माइक्रो आरएनए पर अब तक कोई शोध नहीं हुआ था। महज पांच घं टे में जांच कैंसर का पता लगाने के लिए वर्तमान में हिस्टोपैथॉलजी की जांच होती है, जिसमें 15 दिन लग जाते हैं। जबकि अब महज चार से पांच घंटे में जांच हो सकेगी। शोध में शामिल रहे डॉ. सत्येंद्र सिंह ने बताया कि के 60 मरीजों को दो ग्रुपों में बांटा गया था। इसमें 30 पर अडीनो कार्सीनोवा और 30 में स्क्वैम सेल कार्सीनोवा की जांच करके छह माइक्रो आरएनए मैच करवाए गए। दोनों में एक-एक माइक्रो चिह्नित हो गए हैं। आगे शोध में पता लगाने का प्रयास किया जाएगा कि दूसरे कैंसर में कौन से माइक्रो आरएनए पाए जाते हैं। लंग कैंसर से सबसे अधिक मौत डॉ. वेद ने बताया कि विश्व में प्रतिवर्ष 21 लाख लोग कैंसर की चपेट में आते हैं। इनमें 11.6 फीसदी फेफड़े के कैंसर के होते हैं। कैंसर से मरने वाले मरीजों में फेफड़े के कैंसर से जान गंवाने वालों का प्रतिशत 18.4 है। इसका कारण फेफड़े का कैंसर अंतिम चरण में पता चलता है। इस जांच से समय रहते मर्ज का पता चल सकेगा।
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